इस धरती पर इंसान भगवान को वैसे ही मानता है, जैसे उसने उनके बारे में सुना है या किसी तस्वीर में देखा है। उसी हिसाब से वह उन्हें नाम देता है और पूजता है। मेरा यह लिखने का मकसद यह नहीं है कि भगवान अलग-अलग हैं या बहुत सारे हैं। असली कारण यह है कि इंसान धर्म और जाति के नाम पर आपस में झगड़ता रहता है, और दूसरे धर्म या इंसान से नफ़रत करता है।
जैसे कि बहुत से भगवान हैं — अलग-अलग जगहों पर, अलग-अलग कामों के लिए लोग उन्हें मानते हैं। जैसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्य। लेकिन इसमें इंसान तुलना करता है, बहस करता है।
अब सोचो, इंसान के पास एक शरीर होता है, लेकिन उसमें कई अंग होते हैं — हाथ, पैर, नाक, कान और बाकी। पर जब ये सब मिलकर काम करते हैं तो एक ही शरीर बनता है। उसी तरह भगवान भले अलग-अलग रूपों में दिखाई दें, लेकिन असल में वे सब एक ही हैं। और वही है परमेश्वर।
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