ऐसे बहुत से सवाल मेरे मन में आते हैं।
इस लेख को लिखने का मेरा सिर्फ एक ही उद्देश्य है — लोगों को समझ में आना चाहिए कि असली सत्य क्या है। मैं जो लिख रहा हूँ, वह पूरा सत्य है या अधूरा सत्य, यह मुझे नहीं पता। लेकिन मुझे लगता है — सत्य शायद ऐसा हो सकता है।
जन्म से लेकर अब तक हमें जो भी जानकारी मिली है, वह समाज से मिली है। जैसे कोई इंसान जब कुछ बताता है, तो वह अपनी नज़र से, अपने अनुभव के आधार पर बताता है।
लेकिन सवाल ये है — हम कैसे तय करें कि वह सच है या झूठ?
उदाहरण: अगर किसी इंसान को किसी चीज़ से फायदा हुआ है, तो वह उसे अच्छा कहेगा। और अगर उसी चीज़ से उसे नुकसान हुआ है, तो वह उसे बुरा कहेगा।
क्योंकि हर किसी के अनुभव अलग होते हैं, इसलिए यह ज़रूरी नहीं कि वही चीज़ सबको अच्छी या बुरी लगे।
मुझे लगता है कि सत्य और असत्य ये concepts हर इंसान के लिए अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन इस दुनिया में कुछ ऐसी चीज़ें भी हैं जो सबके लिए समान हैं। जिन्हें कोई भी कभी बदल नहीं सकता।